Mahakumbh 2025 : जानिए कुंभ मेला कब और क्यों लगता है।

Mahakumbh 2025
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Mahakumbh 2025 : कुंभ मेला कब है।

कुंभ मेला कब है: कुंभ की शुरुआत मकर संक्रांति के साथ होती है और इसका समापन महाशिवरात्रि के दिन होता है। ऐसा कहा जाता है कि महाकुंभ में स्नान करने मात्र से व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे जन्म व मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है। Mahakumbh 2025 इस बार प्रयागराज के संगम तट पर आयोजित किया जा रहा है। जिसकी शुरुआत 13.01.2025 से है।

Mahakumbh 2025
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हर 12 साल के अन्तराल में महाकुंभ लगता है। जिसमें करोड़ों श्रद्धालु शामिल होते है। यह चार स्थानों पर लगता है।

Mahakumbh 2025 : कुंभ मेला क्यों लगता है।

महाकुंभ की शुरूआत पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार, जब एक बार राक्षसों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन हुआ, तो इस दौरान मंथन से निकले सभी रत्नों को आपस में बांटने का फैसला हुआ। सभी रत्न को राक्षसों और देवताओं ने आपसी सहमति से बांट लिए, लेकिन इस दौरान निकले अमृत के लिए दोनों पक्षों के बीच युद्ध छिड़ गया।

ऐसे में असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अमृत का पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया। असुरों ने जब देखा कि अमृत गरुड़ से पास है, तो वह इसे छीनने का प्रयास करने लगे। इस छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदें धरती की चार जगहों पर यानी प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी। जहां-जहां यह बूंदे गिरी थी आज वहीं पर 12 सालों के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजन होता है।

Mahakumbh 2025 : कुंभ मेला 12 साल में क्यों लगता है

इसलिए 12 साल में होता है आयोजित, समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत पाने को लेकर 12 दिनों तक लड़ाई होती रही वही शास्त्रों के अनुसार, देवताओं के बारह दिन मनुष्य के बारह वर्षों के समान होते हैं। इसलिए महापर्व कुंभ प्रत्येक स्थल पर 12 साल बाद लगता है। वहीं 12 साल में कुंभ लगने का एक कारण बृहस्पति ग्रह की गति को भी माना जाता है, जो इस प्रकार है –

•जब बृहस्पति ग्रह, वृषभ राशि में हों और इस दौरान सूर्य देव मकर राशि में आते हैं, तो कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है।

•इसी तरह जब बृहस्पति, कुंभ राशि में हों और इस दौरान सूर्य देव मेष राशि में आते हैं, तो कुंभ आयोजन हरिद्वार में होता है।

•सूर्य और बृहस्पति जब सिंह राशि में हों तब महाकुंभ मेला नासिक में लगता है।

•जब देवगुरु बृहस्पति सिंह राशि में हों और सूर्य मेष राशि में हों, तो कुंभ का मेला उज्जैन लगता है।

 

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